विरासत


                                झंझरी मस्‍जि‍द

एतिहासिक झंझरी मस्‍जि‍द शहर के सि‍पाह में गोमती के उत्‍तरी तट पर है.यह मस्‍जि‍द पुरानी वास्‍तुकला का अत्‍यन्‍त सुन्‍दर नमूना है.यह अटाला मस्‍जि‍द की समकालीन है.इसको इब्राहि‍म शाह शर्की ने बनवाया था.सिपाह मुहल्‍ला भी स्‍वयं इब्राहि‍म शाह शर्की का बसाया हुआ है.शर्की बादशाहत में यहॉ पर सेना तथा उसके हाथी, घोड़े, उंट एवं खच्‍चर रहते थे.

सि‍कन्‍दर लोदी ने शर्की सलतनत पर आक्रमण के दौरान इस मस्‍जि‍द को ध्‍वस्‍त करवा दि‍या था.सि‍कन्‍दर लोदी द्वारा ध्‍वस्‍त कि‍ये जाने के बाद यहॉ के काफी पत्‍थर शाही पुल में लगा दि‍ये गये थे.वर्तमान में मस्जिद का झंझरी वाला हिस्सा ही अस्तित्व में है.


                                                                       शेर-हाथी


            'शेर की गिरफ्त में हाथी'की यह प्रतिमा शहर के मध्य स्थित शाही पुल दोनों हिस्सों के बीच स्थापित है.इतिहासकारों के अनुसार यह आकर्षक प्रतिमा पूर्व में किसी बौद्धमठ में स्थापित थी, जहां से यह ला कर पुल पर स्थापित की गयी थी.इस के सामने एक मस्जिद है जिसे शेर मस्जिद कहा जाता है.

                                                    अटाला मस्जिद

अटाला मस्जिद जौनपुर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन मस्जिद है.फिरोजशाह ने 1393 ई0 में अटाला मस्जिद की नींव डाली थी, लेकिन 1408 ई0 में इब्राहिम शाह ने पूरा कराया. इसे जौनपुर में अन्य मस्जिदों के निर्माण के लिये आदर्श माना गया.


      इसकी ऊँचाई 100 फीट से अधिक है.इस मस्जिद में कलात्मक दीवारों के साथ चारो तरफ सुन्दर दीर्घा का निर्माण किया गया था.मस्जिद में प्रवेश के लिए तीन विशाल प्रवेश द्वार हैं. मस्जिद की कुल परिधि 248 फीट है.अटाला मस्जिद शर्की वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है.यह मस्जिद ग्रे बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बनी है. मस्जिद की उल्लेखनीय विशेषता इसका प्रार्थना हॉल है.


                 
              शाही अटाला मस्जिद परिसर में चलने वाले प्राथमिक स्तर विद्यालय के दो बच्चे.मध्यकाल में यहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर का मदरसा चलता था,जहाँ अरबी और फारसी की तालीम दी जाती थी.महान शासक शेरशाह सूरी उन प्रमुख लोगों में से एक था जिन्होंने यहाँ तालीम हासिल की थी.                                                            

                    

                                            शाही किला

         जौनपुर शहर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित शाही किला मध्य काल में शर्की सल्तनत की ताकत का केन्द्र रहा है.विन्ध्याचल से नेपाल,बंगाल और कन्नौज से उड़ीसा तक फैले साम्राज्य की देखरेख करने वाली शर्की फौजों का मुख्य नियंत्रण यहीं से होता था.पुराने केरारकोट को ध्वस्त करके शाही किला का निर्माण फ़िरोज शाह ने करवाया था.स्थापत्य की दृष्टि से यह चतुर्भुजी है और पत्थरों की दीवार से घिरा हुआ है.किले के अन्दर तुर्की शैली का एक स्नानागार है जिसका निर्माण इब्राहिम शाह ने कराया था.
 





                                 

                                 राजा जौनपुर की हवेली

            
         राजा जौनपुर की हवेली के ऊँचे गुम्बद आज भी शहर में कई जगहों पर दूर से ही दिखाई दे जाते हैं.हवेली का महल समय के थपेड़ों की मार सहते हुए अभी भी अपनी भव्यता से लोगों का ध्यान खींच लेता है.राजा जौनपुर के उत्तराधिकारी कुँवर अवनीन्द्र दत्त दुबे हवेली में ही निवास करते हैं.

                                                   धर्मापुर  शिव मंदिर 


                 जौनपुर शहर से करीब 6 किमी0 दूर केराकत मार्ग पर धर्मापुर में एक दर्शनीय शिव मंदिर है.अमृ्तसर के स्वर्णमंदिर की शैली में इसे सरोवर के बीच बनाया गया है.करीब सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन जौनपुर नरेश राजा श्रीकृष्ण दत्त दुबे ने इसका निर्माण कराया था.उ
न्होंने अपने वंशजों से इस मंदिर के प्रति प्रेम रखने का आग्रह भी किया था.निर्माण शिलालेख पर इसका जिक्र भी है-
                                                  भावी भूपति सब यहाँ, पालहि प्रेम विशेष ।
                                                 बार बार कर जोरि यह,याचत कृष्ण नरेश ।।




                                                                 शाही पुल


           जौनपुर शहर के मध्य गोमती नदी पर बना शाही पुल अपने ढंग का अकेला और अनोखा पुल है.मुगल सम्राट अकबर के आदेश से 1568-69 में बन कर तैयार हुए इस पुल की संरचना अफ़गान आर्कीटेक्ट अफजल अली ने तैयार की थी.यह पुल शहंशाह अकबर की आम जनता के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक है.दो भागों में बने इस पुल में जल प्रवाह के लिए दस और पाँच ताखे हैं.पुल के खम्भों पर यात्रियों के विश्राम के लिए गुमटियां (छतरियां)बनी हुई हैं.1934 में भूकम्प और बाद में बाढ़ का प्रकोप झेलने के बावजूद पत्थरों से निर्मित यह पुल आज भी आवागमन का साधन है.



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