Thursday, May 24, 2012

दौड़ती पुलिस,हाँफती पुलिस,भागती पुलिस


अरविन्द उपाध्याय



                                                                                                                                                                               जैसे-जैसे मौसम का पारा चढ़ता गया जौनपुर में अपराध की तपिश भी बर्दाश्त से बाहर होती गयी.पुलिस महकमे के कमांडर ने मातहतों के सभी पेंच कसने के लिए क्या-क्या नहीं किया.नियमित वाहन चेकिंग करवायी,फिर उसकी भी चेकिंग की.रिहर्सलों का दौर चला.फिलहाल सारी कवायदों का नतीजा आना बाकी है.कमांडर की इस हांकागिरी से मातहतों के पसीने तो खूब छूटे लेकिन बजरंगबली की कृपा से हौसला बचा रह गया.पसीना तो बहरहाल छूटना ही था.एक तरफ आग उगलती गरमी, दूसरी तरफ बूट,जिरहबख्तर से लेकर हेलमेट तक कस कर राइफल ताने किसी अदृश्य अपराधी के पीछे भागने की कवायद.एंटी रायट रिहर्सल के तुरंत बाद एक 'पुलिस जी'ने तो खैनी मलते हुए अपना फैसला सुना ही डाला कि 'कहीं रिहर्सल से अपराध रुकता है'.खैर राय देने से किसी को कोई कैसे रोक सकता है?फिर जले-भुने लोगों को जली-कटी  सुनाने का विशेषाधिकार भी है.दरअसल पिछ्ले कई सालों से हर मामले में चवन्नी-अठन्नी की गुंजाइश देखने की महकमे को आदत सी पड़ गयी है.'ऊपर पहुँचाना पड़ता है,हम क्या करें'का ब्रह्मास्त्र सबकी बोलती बंद कर देता था.यह फायदेमंद आदत कोई बदलने के मूड में नहीं है.आम लोग महसूस कर रहें हैं कि कमांडर की कोशिश में कमी नहीं है लेकिन नीचे के लोग साथ नहीं दे रहे हैं.शायद ऊपर के लोग भी समझ रहे हैं,इसलिए कार्रवाई का चाबुक चलना शुरु हो गया है.यह स्थिति पूर्व के भी कुछ तेज अफ़सरों को झेलनी पड़ी है लेकिन आम लोग,खास कर सही सोच के बुध्दिजीवी वर्ग ने मुखबिर घोषित होने जैसी जलालत का खतरा उठा कर भी पीछे से साथ दिया.देखते हैं रस्साकसी कब खत्म होती है.

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